Sunday, April 25, 2010

यहां रोटी भले न हो, मगर किरदार जिंदा है

बात हमारे शहर सिद़धार्थनगर से 45 किमी दूर स्थित पथपरा गांव की है। वहां के दो गंवईं डाक्‍टर विश्‍वदेव शुक्‍ल व जमीरुल्‍लाह की है। दोनो जो कुछ कमाते हैं,भाईचारा और इंसानियत की हिफाजत के नाम पर खर्च कर देते हैं। मैने आज अपने अखबार दैनिक जागरण में साम्‍प्रदायिक सद़भाव के उन दोनो सफीरों पर एक रिपोर्ट फाइल की है। दोनो चिकित्‍सक शुक्‍ल और जमीरुल ने मिल कर आठ ग्रामीणों की टीम बना रखी है। यह लोग साल में तीन महीने के लिए घर छोड कर किसी धार्मिक महत्‍व वाले शहर में जाते हैं। वहां जो भी मंदिर, मस्जिद, गिरजा मिलता है, पूजा अर्चना करते है और वहां लोगों से देश और समाज की तरक्‍की के लिए साम्‍प्रादायिक सद़ृभाव की जरूरत पर अपने विचार करते हैं। इस काम में जो रकम खर्च होती है, वह अपने पास से खर्च करते हैं। वह कभी प्रिंट अथवा इलेक्‍टृनिक मीडिया से बात तक नहीं करते। बस अपना मिशन खामोशी से चला रहे हैं। यह काम वह पिछले दस साल से चला रहे हैं। अचानक यह बात मुझे पिछले सप्‍ताह मालूम हुई, मैने उन पर स्‍टोरी फ़ाइल की। जागरण ने इसे 25 अप्रैल 2010 के अंक में प्रकाशित भी किया। दोनों चिकित्‍सक दोस्‍तों की इंसानियत के प्रति यह मुहब्‍बत देख मै अभिभूत हूं। मै सोचता हूं कि आज के जहर भरे माहौल में वह हर साल अपनी नौ महीने की कमाई खर्च कर यह सब क्‍यों कर रहे है। इसके जवाब में दोनों डाक्‍टर दोस्‍तों ने जो कुछ कहा, वह देश के राजनीतिज्ञों के लिए सबक़ हैं। उनकी बात एक शेर के रूप में है, जिसे मै पेश कर रहा हूं, उम्‍मीद है, आप बात की तह तक पहुंच जाऐंगे। प्रस्‍तुत है शेर::::
नदी की तरह से होती हैं, सरहद की लकीरें भी,
कोई इस पार जिंदा है, कोई उस पार जिंदा है,
सियासतदानों से कह दो हमारे गांव, मत आऐं,
यहां रोटी भले न हो, मगर किरदार जिंदा है।

1 comment:

  1. great report nazeer sahab....isko kahtey hain patrakarita....mere layaq koi khidmat?

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